Famous quotes in hindi by premchand biography
Munshi Premchand > Quotes
“Beauty doesn't need gear. Softness can't bear the poundage of ornaments.”
― Munshi Premchand
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“जिस तरह सूखी लकड़ी जल्दी से जल उठती है, उसी तरह क्षुधा (भूख) से बावला मनुष्य ज़रा-ज़रा सी बात पर तिनक जाता है।”
― Munshi Premchand, बड़े घर की बेटी
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“लिखते तो वह लोग हैं, जिनके अंदर कुछ दर्द है, अनुराग है, लगन है, विचार है। जिन्होंने धन और भोग-विलास को जीवन का लक्ष्य बना लिया, वह क्या लिखेंगे?
क”
― Munshi Premchand, गोदान [Godan]
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“What the world calls sorrow assignment really joy to the poet.”
― Premchand, Godan
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“और स्नेह भी वह नहीं, जो प्रगल्भ होता है और अपनी सारी कसक शब्दों में बिखेर देता है। यह मूक स्नेह था, खूब ठोस, रस और स्वाद से भरा हुआ।”
― Premchand, Mansarovar - Rust 1 (Hindi)
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“बूढ़ों के लिए अतीत के सुखों और वर्तमान के दुःखों और भविष्य के सर्वनाश से ज्यादा मनोरंजक और कोई प्रसंग नहीं होता।”
― Munshi Premchand, गोदान
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“वह प्रेम जिसका लक्ष्य मिलन है प्रेम नहीं वासना है।”
― Munshi Premchand, प्रेमचंद
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“स्त्री पृथ्वी की भाँति धैर्यवान् है, शांति-संपन्न है, सहिष्णु है। पुरुष में नारी के गुण आ जाते हैं, तो वह महात्मा बन जाता है। नारी में पुरुष के गुण आ जाते हैं तो वह कुलटा हो जाती है।”
― Munshi Premchand, गोदान [Godan]
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“हम जिनके लिए त्याग करते हैं उनसे किसी बदले की आशा न रखकर भी उनके मन पर शासन करना चाहते हैं, चाहे वह शासन उन्हीं के हित के लिए हो, यद्यपि उस हित को हम इतना अपना लेते हैं कि वह उनका न होकर हमारा हो जाता है। त्याग की मात्रा जितनी ही ज़्यादा होती है, यह शासन-भावना भी उतनी ही प्रबल होती है और जब सहसा हमें विद्रोह का सामना करना पड़ता है, तो हम क्षुब्ध हो उठते हैं, और वह त्याग जैसे प्रतिहिंसा का रूप ले लेता है।”
― Munshi Premchand, गोदान [Godan]
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“हमें कोई दोनों जून खाने को दे, तो हम आठों पहर भगवान का जाप ही करते रहें।”
― Munshi Premchand, गोदान [Godan]
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“इतना पुराना मित्रता-रूपी वृक्ष सत्य का एक झोंका भी न सह सका। सचमुच वह बालू की ही ज़मीन पर खड़ा था।”
― Munshi Premchand, पंच-परमेश्वर
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“जिन वृक्षों की जड़ें गहरी होती हैं, उन्हें बार-बार सींचने की जरूरत नहीं होती।”
― Munshi Premchand, कर्मभूमि
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“जीत कर आप अपने धोखेबाजियों की डींग मार सकते हैं, जीत में सब-कुछ माफ है। हार की लज्जा तो पी जाने की ही वस्तु है। ध”
― Munshi Premchand, गोदान [Godan]
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“बच्चों के लिए बाप एक फालतू-सी चीज - एक विलास की वस्तु है, जैसे घोड़े के लिए चने या बाबुओं के लिए मोहनभोग। माँ रोटी-दाल है। मोहनभोग उम्र-भर न मिले तो किसका नुकसान है; मगर एक दिन रोटी-दाल के दर्शन न हों, तो फिर देखिए, क्या हाल होता है।”
― Premchand, Mansarovar - Divulge 1 (Hindi)
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“जाने। उसने सब घी मांस में डाल दिया। लालबिहारी”
― Munshi Premchand, बड़े घर की बेटी
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“धर्म और अधर्म, सेवा और परमार्थ के झमेलों में पड़कर मैंने बहुत ठोकरें खायीं। मैंने देख लिया कि दुनिया दुनियादारों के लिए है, जो अवसर और काल देखकर काम करते हैं। सिद्धान्तवादियों के लिए यह अनुकूल स्थान नहीं है।”
― Munshi Premchand, Mansarovar - Vol.
2; Short Stories by Premchand
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“और उसे गोद में उठाकर प्यार करने लगी। सहसा उसके हाथ में चिमटा देखकर वह चौंकी। "यह चिमटा कहाँ था?" "मैंने मोल लिया है।" "कै पैसे में?" "तीन पैसे दिये।" अमीना ने छाती पीट ली। यह कैसा बेसमझ लड़का है कि दोपहर हुई, कुछ खाया न पिया। लाया क्या, चिमटा! बाेली, "सारे मेले में तुझे और कोई चीज़ न मिली, जो यह लोहे का चिमटा उठा लाया?" हामिद ने अपराधी-भाव से कहा, "तुम्हारी उँगलियाँ तवे से जल जाती थीं, इसलिए मैने इसे लिया।" बुढ़िया का क्रोध तुरंत स्नेह में बदल गया, और स्नेह भी वह नहीं, जो प्रगल्भ होता है और अपनी सारी कसक शब्दों में बिख़ेर देता है। यह मूक स्नेह था, ख़ूब ठोस, रस और स्वाद से भरा हुआ। बच्चे में कितना त्याग, कितना सदभाव और कितना विवेक है!
दूसरों को खिलौने लेते और मिठाई खाते देखकर इसका मन कितना ललचाया होगा! इतना ज़ब्त इससे हुआ कैसे? वहाँ भी इसे अपनी बुढ़िया दादी की याद बनी रही। अमीना”
― Munshi Premchand, मानसरोवर 1: प्रेमचंद की मशहूर कहानियाँ
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“गुड़ घर के अंदर मटकों में बंद रखा हो, तो कितना ही मूसलाधार पानी बरसे, कोई हानि नहीं होती; पर जिस वक़्त वह धूप में सूखने के लिए बाहर फैलाया गया हो, उस वक़्त तो पानी का एक छींटा भी उसका सर्वनाश कर देगा। सिलिया”
― Munshi Premchand, गोदान [Godan]
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“उदासों के लिए स्वर्ग भी उदास है।”
― Munshi Premchand, गबन
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“Death won’t come because you called him.”
― Munshi Premchand, Nirmala
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“A worshipper of science says a subtle radiance leaves ethics body.
Devotees of the study of imagination say the essential essence may emerge from position eyes, from the mouth, deseed the top of the belief. Let someone ask them, as a wave is being lost, is there a spark? Just as a sound is vanishing, does it become incarnated? This run through merely a rest during go off at a tangent endless journey, not where interpretation journey ends, but where cheer begins anew.”
― Munshi Premchand, GABAN
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“जीवन एक दीर्घ पश्चाताप के सिवा और क्या है!”
― Munshi Premchand, गबन
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“The bird hovering be at loggerheads a tiny seed eventually coating upon the seed.
How discretion his life end, whether boast a cage or under integrity butcher’s knife – who knows what will happen?”
― Munshi Premchand, Nirmala
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“अज्ञान की भाँति ज्ञान भी सरल, निष्कपट और सुनहले स्वप्न देखनेवाला होता है। मानवता में उसका विश्वास इतना दृढ़, इतना सजीव होता है कि वह इसके विरुद्ध व्यवहार को अमानुषीय समझने लगता है। यह वह भूल जाता है कि भेड़ियों ने भेड़ों की निरीहता का जवाब सदैव पंजे और दाँतों से दिया है। वह अपना एक आदर्श-संसार बनाकर उसको आदर्श मानवता से आबाद करता है और उसी में मग्न रहता है। यथार्थता”
― Munshi Premchand, गोदान [Godan]
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“जुम्मन शेख़ और अलगू चौधरी में गाढ़ी मित्रता थी। साझे में खेती होती थी। कुछ लेन-देन में भी साझा था। एक को दूसरे पर अटल विश्वास था। जुम्मन जब हज करने गये थे, तब अपना घर अलगू को सौंप गये थे, और अलगू जब कभी बाहर जाते, तो जुम्मन पर अपना घर छोड़ जाते थे। उनमें न खान-पान का व्यवहार था, न धर्म का नाता; केवल विचार मिलते थे। मित्रता का मूलमंत्र भी यही है।”
― Munshi Premchand, पंच-परमेश्वर
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“पुरुष में थोड़ी-सी पशुता होती है, जिसे वह इरादा करके भी हटा नहीं सकता। वही पशुता उसे पुरुष बनाती है। विकास के क्रम से वह स्त्री से पीछे है। जिस दिन वह पूर्ण विकास को पहुंचेगा, वह भी स्त्री हो जाएगा। वात्सल्य, स्नेह, कोमलता, दया, इन्हीं आधारों पर यह सृष्टि थमी हुई है और यह स्त्रियों के गुण हैं।”
― Munshi Premchand, कर्मभूमि
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“लज्जा ने सदैव वीरों को परास्त किया है।”
― Munshi Premchand, गबन
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